खण्डेलवाल समाज का इतिहास
खण्डेलवाल वैश्य जाति के प्रमुख इतिहासकार के अनुसार इस जाति की,उत्पति खाण्डल वंश,खाण्डल ऋषि,खण्डेलवाल पद व स्वर्णखंडों के क्रय-विक्रय के कार्य विशेष से सम्बंधित है यधपि उत्पति से सम्बंध में कोई ठोस प्रमाण नही मिलते तथापि विभिन्न ताध्यों के आधार पर जो बातें प्रकाश में आयी हैं उनका विवरण इस प्रकार है |
खंडेलवाल समाज का उद्गम स्थान राजस्थान के सीकर जिले के खंडेला नामक ग्राम में हुआ था | खड़ेला ग्राम में एक महान ऋषि हुआ करते थे जिनका नाम खाण्डल था , माना जाता है की उन्ही के नाम के हमारे समाज का नाम खंडेलवाल हुआ | ऋषि खाण्डल के ७२ पुत्र हुए और प्रत्येक पुत्र का जो वंश आगे बड़ा वो आगे चल कर हमारे ७२ गोत्र बने , सभी पुत्र अलग अलग कार्यो में कुशल थे जिन के आधार पर उनका नाम पड़ा और हमारे गोत्र का नाम भी पड़ा | प्रत्येक पुत्र ने अपने कुल के लिए देवियों को माना एवं उनकी पूजा की जो उस कुल की कुलदेविया कहलाई |
एक अन्य मान्यता के अनुसार
द्वापर युग के अंत में हस्तिपुर में राजा पांडु ने एक यज्ञ किया | जिसमे भारतवर्ष के अनेक राजा महाराजाओ व ऋषि , मुनियो ने भाग लिया | वहाँ से लौटते समय 20 ऋषि व 4
राजा से सेठ खठ्मल के यज्ञ में शामिल हुए | वहाँ ये लोग शिकार करने के लिए जंगल गयें और हिरन को मारा | वह हिरन दुर्वाश ऋषि का था | दुर्वाश ऋषि ने तपस्या समाप्त होने पर मरा हिरन देखकर इन सभी 24 जनों को श्राप दिया और वे पत्थर के हो गये | सेठ खटमल ने दुर्वासा ऋषि के पास जाकर इन 24 मेहमानों की श्राप मुक्ति की प्रार्थना की | दुर्वासा ऋषि ने उसकी प्रार्थना मानते हुए कहा की ये 24 जाने वैश्य हो जाये | तब सेठ खटमल ने सभी वैश्यों को एकत्र कर कहा की ये सभी खण्डेलवाल वैश्य कहलायेंगे | यही खण्डेलवाल वैश्य जाति की उत्पति हुई|
आज भी खंडेला ग्राम मैं आपको कई कुलदेवियो के मंदिर मिल जायेगे | इसी दिशा में आगे कदम बढ़ाते हुए सभी समाज बंधुओ ने मिल केर वह पर खंडेला धाम का निर्माण कराया , यहाँ पर सभी कुल देवियों के मंदिर एकसाथ बनाये गए है जिससे हम एकसाथ एक स्थान पर सभी के दर्शन कर सके |