संत कवि सुन्दरदास जी का इतिहास


समाज गौरवसंत सुन्दर दास जी महाराज : संत सुन्दरदास जी समाज के महान संत हुए है। जिनकी ख्याति खण्डेलवाल समाज मे ही नही अपितु सम्पूर्ण भारत मे रही है। आपके द्वारा अनेक ग्रन्थों की रचना हुई है । सुन्दर ग्रन्थावली आपकी प्रमुख रचना थी। हर साल रामनवमी पर आपकी जयंती पुरे देश मे धुमधाम से मनायी जाती है। संत जी पर डाक टिकट जारी हो चुका है। तथा समाज के प्रेत्यक कार्यक्रम मे संत जी का चित्र लगाया गया है। महासभा भवन मे सामने वाले मार्ग जयपुर नगर निगम ने संत सुन्दरदास मार्ग रखने का निर्णय लिया है। 

ज्ञान के महत्व को प्रतिपादित करने वाले संत श्री सुन्दरदास जी एक कवि ही नहीं बल्कि एक महान संत,धार्मिक एवं समाज सुधारक थे। उनका जन्म देवनगरी दौसा में बूसर गोत्र के खंडेलवाल वैश्य कुल में चैत्र सुदी नवमी,संवत 1653 में हुआ। उनके पिता का नाम सार ‘‘ चोखा ‘‘(परमानन्द) तथा माता का नाम सती था। सुन्दरदास जी संत दादू के शिष्य थे। उन्होंने छोटी सी आयु में ही अपने गुरू से दीक्षा और आध्तात्मिक उपदेश प्राप्त कर लिया था। सुन्दरदास जी बाल ब्रहा्रचारी ,बाल कवि एवं बाल योगी थे। अपनी प्रखर प्रतिभा ,भगवत प्रेम एवं बाल योगी थें। अपनी प्रखर प्रतिभा ,भगवत प्रेम एवं उत्तम स्वभाव के कारण सबके प्रिय हो गये। संवत् 1664 में जगजीवन जी दादू शिष्य रज्जन जी आदि के साथ काशी में चले गये। काशी रहकर उन्होंने संस्कृत ,हिन्दी व व्यावरण ,कोष षट्शास्त्र,पुराण,वेदान्त का गहन अध्ययन किया । संख्य योग,वेदान्त के वृहद शास्त्र, उपनिषद, गीता, योगवशिष्ठ,शंकर भाष्य आदि का भली भांति मनन किया । काशी में सुन्दरदास जी असी घाट के पास रहते थे। 

आप अपना अध्ययन समाप्त कर कार्तिक बदी चौदस,संवत् 1682 से जयपुर राज्य के शेखावाटी प्रान्तवर्ती फतेहपुर में आयें और वहां निवास किया। आप वहां योगाभ्यास कथा कीर्तन तथा ध्यानादि करतें रहे। आपका देशाटन के प्रति शैाक होने के कारण जहां-जहां आपका देशाटन कथा कीर्तन तथा संभर ,आमेर ,कल्याणपुर,दिल्ली ,आगरा ,लाहौर ,गुजरात ,मेवाड मालवा बिहार आदि स्थानों पर प्रायःजाया करते थे। 

संत सुन्दरदास जी का साहित्य सृजनकाल संवत् 1664 से लेकर मृत्युपर्यन्त चलता रहा। आपने 42 मौलिक ग्रन्थ लिखे है।,जो आपकी प्रखर प्रतिभा को उजागर करते है। आफ ग्रन्थों की भाषा सरल,सुबोध,स्पष्ट,सरस है और सभी रचनाएं सारयुक्त है। स्वामी जी ने ब्रजभाषा ,राजपूतानी और खडी बोली मिश्रित भाषा, के साथ ही फारसी शब्द मिश्रित पंजाबी ,पूर्वी तथा गुजराती भाषाओं में कविता की है।